जंगली घास

घटना दागिस्तान के जन-कवि रसूल हमजातोव के बचपन की है। रसूल घर से चले तो थे अपने स्कूल जाने के लिए, लेकिन मुड़ गए कुछ आवारा लड़कों के साथ एक जुआ घर की तरफ। उस जुआघर में जुए का यह खेल जमीन पर घुटनों के बल लेटकर खेला जाता था।

इस कारण रसूल की घुटने के ऊपर पैंट फट गई। रसूल शाम को देर से घर पहुंचे, तो पिताजी ने तलब किया, ‘ये तुम्हारी पतलून कैसे फटी।’ ‘स्कूल में फट गई थी, कील में उलझ कर।’ रसूल ने जवाब दिया। पिताजी का एक जोरदार तमाचा रसूल की गाल पर पड़ा।

‘सच बताओ पतलून कैसे फटी?’ इस बार रसूल चुप रहे। पिताजी ने एक और जोरदार तमाचा दूसरी गाल पर जड़ दिया। अबकी बार पिताजी ने कोड़ा लहराते हुए फिर पूछा’ ‘सब सच-सच बताओ।’ कोड़े को देखकर रसूल टूट गए और सब सच-सच बता दिया।

पिताजी ने रसूल से पूछा’ ‘बताओ तुम्हारी पिटाई क्यों की गई।’ रसूल ने जवाब दिया, ‘क्योंकि मैं स्कूल नहीं गया, जुआ खेला, पतलून फाड़ी।’ पिताजी ने कहा’ ‘हां ये तुम्हारी गलतियां थीं। लेकिन ये गलतियां इतनी छोटी थीं कि इनके लिए अधिक से अधिक तुम्हारी डांट-डपट होती।

पिटाई तुम्हारे झूठ बोलने के लिए की गई। झूठ तुम्हारी आत्मा के खेत मे भयानक जंगली घास है। अगर उसे वक्त पर न उखाड़ फेंका जाए तो वह सारे खेत में फैल जाएगी और अच्छे बीज के फूट निकलने की कहीं भी जगह नहीं बचेगी।

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