निंदा की घातकता

धनुर्धारी अर्जुन ने एक बार प्रतिज्ञा की कि जो भी मेरे धनुष गांडीव की निंदा करेगा या उसे हानि पहुंचाएगा, मैं उसके प्राण हर कर ही जल ग्रहण करूंगा। चारों ओर यह बात फैल जाने के कारण सब लोग इस विषय में सचेत रहते थे।

पर एक दिन बड़े भ्राता युधिष्ठिर आवेश में कह बैठे-अनुज अर्जुन, धिक्कार है तेरे इस गांडीव को, जो तुम्हारे इशारों का दास होते हुए भी प्रिय पुत्र अभिमन्यु की रक्षा ना कर सका। अर्जुन रोष से बोला-भ्राता श्री, जो आप कह रहे हैं, वह ठीक ही कह रहे हैं।

पर मुझे भी अपने वचनों का मान तो रखना ही है, इसलिए अब आपका जीवित रहना मुश्किल है। अब मैं आपका वध करके ही अन्न जल ग्रहण करूंगा। अर्जुन के शब्द सुनकर सब जड़वत रह गए क्योंकि उसकी दृढ़ता और वचनबद्धता से सभी परिचित थे।

स्थिति बिगड़ती देख श्रीकृष्ण सामने आए और अर्जुन से कहा-ठीक है पार्थ, प्रतिज्ञा का पालन अति आवश्यक है। फिर युधिष्ठिर को सामने बैठाकर बोले-बैठिए धर्मराज और अर्जुन को अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने दीजिए।

फिर अर्जुन से कहने लगे-अर्जुन, तुम्हारी प्रतिज्ञा दोषी की हत्या करने की है, सिर काटने की नहीं और शास्त्रों में किसी की उसके सामने कड़वे और कठोर शब्दों में निंदा करना भी उसकी हत्या से भी बढ़कर है। तुम इसी रूप में धर्मराज की हत्या करो और अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण होने का उत्सव मनाओ।

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