सेवा का संकल्प

एक बार बालक सुभाष चार दिन तक घर नहीं लौटा। कई लोग उन्हें खोजते-खोजते, इधर-उधर दौड़े। सभी जगह खोजा, पूछताछ की लेकिन कुछ पता न चला। बेचारी माता बालक के किसी संकट में पड़ जाने की आशंका से बिलख रही थी।

व्याकुल माता की आंखों को अचानक पीछे से आकर किसी ने नन्हे हाथों से बंद कर लिया। माता स्पर्श पहचान गयी। नेत्र बन्द करने वाले हाथों को पकड़ कर उसे अपनी गोद में खींच लिया और पूछा, ‘चार दिन से तुम कहां थे बेटा?’ बालक सुभाष मुस्कुराते हुए बोले, ‘मां! यहीं पास के गांव में हैजा फैला था।

बीमारों को सेवा-मदद की जरूरत थी। अतः इतने दिन अधिक सेवा में लगा रहा, तुम्हें सूचना देने का समय ही नहीं रहा।’ मां ने उनकी सेवा-भावना की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘शाबाश बेटा! तुमको पुत्र रूप में पाकर मैं गौरवान्वित हूं।’ यही बालक भारत माता का वीर सुपुत्र स्वाधीनता सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम से अमर हैं।

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