सावन के इस महीने में चलिए आप से हो जाएं शिव अराधना से जुड़ी कुछ बातें और कुछ कहानियां

सावन का महीना शुरू हो गया है, बम बम भोले की गूंज के जयकारे शिव भक्तों के बीच गूंज रहे हैं। हर बार के मुकाबले ये फर्क है कि पंडितों से लेकर शिव भक्तों के मुंह पर मास्क बंधे हुए हैं। कोरोना के इस संकटकाल में ये जरूरी भी हैं। सावन के इस महीने में चलिए आप से शिव अराधना से जुड़ी कुछ बातें हो जाएं, कुछ कहानियां हो जाएं। ये कहानियां हैं शिव मैनेजमेंट की। शिव को देवों का देव कहा गया है, ऐसे में आखिस शिवजी के निर्णय हमें कैसे हमारी प्रोफेशल लाइफ में लर्निंग देते हैं, इन कहानियों में ये ही ही जानते हैं।

धन की पोटली

एक बार की बात है। एक पति पत्नी थे. शिव जी के परमभक्त थे। सुबह शाम शिव जी को याद किया करते। कभी किसी का बुरा नहीं करते। पर शिवजी के सबसे प्रिय होने के बाद भी गरीब थे। पार्वती जी ने एक बार शिवजी से कहा, ये आपकी इतनी भक्ति करते हैं, इनकी निर्धनता दूर क्यों नहीं कर देते। शिवजी ने समझाना चाहा कि यह सब कर्मों का फल है। भक्ति अपनी जगह, कर्म अलग जगह। कर्म धनार्जन के होंगे, तभी निर्धनता दूर होगी, बैठे बैठे सिर्फ भक्ति करने से निर्धनता दूर नहीं हो सकती। लेकिन मां पार्वती नहीं मानीं, उन्होंने जिद की, कि इस भक्त जोड़े के लिए कुछ कीजिए। पार्वती जी के कहने पर भगवान शिव ने सोने की अशर्फियों से ये भरी एक पोटली उस रास्ते में डाल दी, जहां से ये निर्धन पति पत्नी जा रहे थे। पोटली से कुछ दूर ही पति ने पत्नी से कहा- प्रिये, भगवान शिव का हम पर कितना उपकार है कि हमें सही सलामत शरीर दिया। निरोगी होने से भला और बड़ा क्या उपहार होगा। पत्नी ने सवाल किया- एक बात समझ नहीं आई, ये नेत्रहीन लोग कैसे जीवन व्यतीत करते होंगे ? पति ने भी कहा- हां बड़ी मुश्किल होती होगी. पत्नी ने कहा- चलो हम अंधों की तरह चलते हैं, देखें वो कैसे जीवन जीते हैं। दोनो पति पत्नी आंखें बंद कर एक दूजे का हाथ थामे चलने लगे. सोने की अशर्फियों की पोटली रास्ते में ही पड़ी रह गई और पति पत्नी शिव जाप करते हुए बगल से गुजर गए।

शिक्षा- बिना भाग्य कहां कुछ मिलता है।

शिव मैनेजमेंट- भले ही प्रोफेशनल लाइफ में आपको सोने की अशर्फियों से भरी पोटली देने वाले मौजूद हों, मिलेंगी तभी जब आपके अटेंशन और डेडिकेशन की आंखे खुली होंगी।

पृथ्वी का चक्कर

आपने हमने सबने वो कहानी तो सुनी ही है, जिसमें शिव पार्वती पुत्र गणेश और कार्तिकेय को पृथ्वी का चक्कर लगाने की बात कहते हैं। वो कहानी हम आपको फिर से नहीं सुनाते, बस उसके सार में छुपे शिव मैनेजमेंट को दर्शाने की कोशिश करेंगे। जब कार्तिकेय पूरी पृथ्वी का चक्कर काट रहे थे, भगवान गणेश ने अपने माता पिता के चारों और परिक्रमा की और उस प्रतिस्पर्धा में वो विजेता भी रहे क्योंकि एक पुत्र के लिए माता पिता ही पृथ्वी, सृष्ठी और सम्पूर्ण ब्रह्मांड के समान हैं।

शिक्षा- माता-पिता जीवन में सर्वोपरि हैं।

शिव मैनेजमेंट- लॉन्ग प्रोसेस वर्क की बजाये, स्मार्ट वर्क बेहतर है। उस प्रतिस्पर्धा के निर्णायक शिव-पार्वती थे। उन्होंने स्मार्ट टैक्नीक को पसंद किया। हमारे रोजमर्रा के प्रोफेशनल जीवन में भी यही समझना चाहिए। लंबी प्रक्रिया कर काम को अटकाये रखने वाले टीम मेम्बर की बजाए स्मार्ट थिंकिंग से चुटकियों में आउटपुट देने वालों को आगे रखना जरूरी है।

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