सीआइएससीई ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की स्थगित परीक्षाओं के लिए मार्किंग जारी कर दी स्कीम

दि काउंसिल फॉर दि इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआइएससीई) ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की स्थगित परीक्षाओं के लिए मार्किंग स्कीम जारी कर दी है। बोर्ड ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर नोटिफिकेशन जारी कर इसकी विस्तृत जानकारी दी है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बोर्ड ने पूर्व में कोरोना के चलते स्थगित परीक्षाएं रद कर दी थी।

सीआइएससीई ने स्थगित परीक्षाओं के असेसमेंट के लिए सीबीएसई पैर्टन को ही मूल रखा है। अब तक छात्र जिन विषयों की परीक्षा दे चुके हैं, उनमें सर्वश्रेष्ठ तीन विषयों के अंकों का औसत और पूर्व में अर्जित अंक और प्रयोगात्मक परीक्षाओं के अंकों को ही आधार बना कर अन्य विषयों में अंक दिए जाएंगे। खास बात यह है कि बोर्ड ने असेसमेंट स्कीम के लिए 2015 से 2019 के साथ ही साल 2020 की बोर्ड परीक्षाओं के आंकड़ों का भी आकलन किया है। सभी चीजों को मिलाकर औसत अंक ही छात्रों को दिए जाएंगे। जिससे इस साल बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने वाले सभी छात्र-छात्रओं का परीक्षाफल निष्पक्ष तैयार हो सके। बता दें कि सीआइएससीई बोर्ड के 10वीं और 12वीं का परिणाम 15 जुलाई तक जारी होने की संभावना है।

नॉन क्लीनिकल पीजी कोर्स की फीस घटी, बॉन्ड खत्म

प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पीजी के नॉन क्लीनिकल पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत छात्र-छात्रओं को राहत मिल गई है। उन्हें अब सालाना पांच लाख के बजाय एक लाख रुपये फीस देनी होगी। साथ में इस पाठ्यक्रम में रियायती फीस पर बांड की व्यवस्था खत्म कर दी गई है।

स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने शुक्रवार को इस संबंध में चिकित्सा शिक्षा निदेशक को आदेश जारी किए हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कुछ दिन पहले नॉन क्लीनिकल पीजी पाठ्यक्रमों के लिए फीस पांच लाख से घटाकर एक लाख करने को मंजूरी दी थी। सरकार के इस कदम से प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पीजी की नॉन क्लीनिकल पाठ्यक्रम की रिक्त सीटें तेजी से भर सकेंगी। पीजी के नॉन क्लीनिकल पाठ्यक्रम की फीस ज्यादा होने की वजह से इसमें छात्र-छात्रओं की रुचि घटने की प्रवृत्ति देखी गई है।

एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, फॉर्मेकोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री जैसे विषयों में कम ही दाखिले होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार जिन विषयों में प्रैक्टिस नहीं है, उनमें डॉक्टर दाखिला लेना ही नहीं चाहते। कई बार वह क्लीनिकल सब्जेक्ट की सीट खाली न होने पर, नॉन क्लीनिकल में दाखिला लेते हैं। बाद में क्लीनिकल की सीट मिलने पर नॉन क्लीनिकल की सीट छोड़ देते हैं। विगत वर्षों में देखा गया है कि नॉन क्लीनिकल में अधिकांश पीजी की सीटें खाली रह गईं। इससे मेडिकल कॉलेजों और नर्सिंग कॉलेजों में फैकल्टी की कमी भी दूर हो सकेगी। शासनादेश में पीजी नॉन क्लीनिकल पाठ्यक्रम में बांड की व्यवस्था खत्म कर दी गई है। इस पाठ्यक्रम में बॉन्डधारी छात्रों के लिए फीस 60 हजार निर्धारित की गई थी।

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